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लेखनी प्रतियोगिता -20-Apr-2023 अन्दर की आवाज

.                           "अन्दर की आवाज"

           पुराने दिनौ की बात है। उस समय ज्यादातर लोग  कहीं भी आने जाने के लिए घोडौ़ का इस्तैमाल करते थे।

             एक समय की बात है कि    एक बुढ़िया बड़ी सी भारी  गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी।  गठरी में बजन भी कुछ ज्यादा ही था। वह बुढि़या सहारे के लिए इधर उधर देखने लगी।

              तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी–‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ 

          घुड़सवार  बुढि़या की आवाज सुनकर रुक गया। उसने पूछा–‘क्या बात है माई ? क्यौ आवाज लगा रही थी ,? क्या कोई काम है? " 
          बुढ़िया ने कहा– "  अरे बेटा, मुझे उस सामने वाले गाँव में जाना है। बहुत थक गई हूँ। यह गठरी उठाई नहीं जाती। बैसे भी यह गठरी कुछ भारी है।  मुझे ऐसा महसूस होरहा है कि  तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी। मै वहाँ आकर तुझसे यह गठरी ले लूँगी मुझे कुछ सहारा मिल जायेगा। ईश्वर तेरा भला करेगा।"
          उस घुड़सबार  ने कहा– " देख  माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूँ। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहाँ पहुँचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुँच जाऊँगा। वहाँ पहुँचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूँगा ? मुझे किसी जरूरी काम से इस गाँव से अगले गाँव तक जाना है। मै वहाँ खडे़ होकर तेरी प्रतीक्षा नहीं कर सकूँगा। "  इतना  कहकर वह घुड़सबार  चल पड़ा। 

                 कुछ ही दूर आगे  जाने के बाद  ही उस घुड़सबार के मन में आवाज आई – "  अरे तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। सम्भव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता?? चल वापस, गठरी ले ले। वह क्या तुझे जानती है ? कितना सुन्दर मौका तूने अपने हाथ से खो दिया।"

           ऐसा सोच बिचार करते हुए वह वापस आ गया और बुढ़िया से बोला–‘माई, ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूँ। गाँव में रुककर तेरी राह देखूँगा। मै अपना काम बाद में कर लूँगा। 
          
                 बुढ़िया ने कहा– " नही  बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी। मै स्वयं ही लेकर चल लूँगी। "
          घुड़सवार ने कहा– " अरी माई अभी तो तू कह रही थी कि मेरी गठरी  ले चल। जब मै  लेकर  चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। ऐसा क्यों ? यह उलटी बात तुझे किसने समझाई है ? "
          
        वह बुढ़िया मुस्कराकर बोली– " अरे भाई मुझे भी यह बात उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। और चम्पत हो जाना।  जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा। मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।  मैने भी जमाना देखा है। मैने तेरे चेहरे के भाव पढ़ लिए है।"

     वह घुड़सवार उस बुढि़या के चेहरे को देखरहा था और सोचने लगा बुढि़या बहुत चालाक है।  इसने मेरी चालाकी को कितनी जल्दी पकड़ लिया है।

        इसलिए ही कहते है जो चोर हमारे अन्दर बैठा है उसका भी बाप दूसरे के अन्दर बैठा है। जैसा हम सोचते है वह उससे भी ऊपर सोच रखता  है।

                          *जय जय श्री कृष्णा*
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आज की प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक रचना।

नरेश शर्मा " पचौरी "

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5 Comments

Gunjan Kamal

23-Apr-2023 07:53 PM

👏👌

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Punam verma

21-Apr-2023 08:15 AM

Very nice

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Rakesh rakesh

21-Apr-2023 02:36 AM

🙏👌👌👌

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